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नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई व्यक्ति अपनी परित्यक्त पत्नी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबप्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी को 2.60 करोड़ रुपये की पूरी बकाया राशि अदा करने का अंतिम मौका देते हुए यह कहा। साथ ही, मासिक गुजारा भत्ता के तौर पर 1.75 लाख रुपये देने का भी आदेश दिया।पीठ ने तमिलनाडु निवासी व्यक्ति की एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।यह व्यक्ति एक दूरसंचार कंपनी में राष्ट्रीय सुरक्षा की एक परियोजना पर काम करता है।उसने कहा कि उसके पास पैसे नहीं है और रकम का भुगतान करने के लिए दो साल की मोहलत मांगी। इस पर, शीर्ष न्यायालय ने कहा कि उसने न्यायलय के आदेश का अनुपालन करने में बार-बार नाकाम रह कर अपनी विश्वसनीयता खो दी है।न्यायालय ने हैरानगी जताते हुए कहा कि इस तरह का व्यक्ति कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा की परियोजना से जुड़ा हुआ है। पीठ ने कहा, ''पति अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता मुहैया करने की जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकता है और यह उसका कर्तव्य है कि वह गुजारा भत्ता दे। ''पीछ ने अपने आदेश में कहा, ''हम पूरी लंबित राशि के साथ-साथ मासिक गुजारा भत्ता नियमित रूप से अदा करने के लिए अंतिम मौका दे रहे हैं...आज से चार हफ्तों के अंदर यह दिया जाए, इसमें नाकाम रहने पर प्रतिवादी को दंडित किया जा सकता और जेल भेज दिया जाएगा। '' न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद के लिए निर्धारित कर दी। न्यायालय ने कहा, ''रकम का भुगतान नही किये जाने पर अगली तारीख पर गिरफ्तारी आदेश जारी किया जा सकता है और प्रतिवादी को जेल भेजा सकता है।''न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि निचली अदालत ने व्यक्ति को 2009 से गुजारा भत्ता की लंबित बकाया राशि करीब 2.60 करोड़ रुपये और 1.75 लाख रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने को कहा था। उसने लंबित रकम में 50,000 रुपये ही दिया है। वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से पेश हुए पति ने न्यायलय से कहा कि उसने अपना सारा पैसा दूरसंचार क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी एक परियोजना के अनुसंधान एवं विकास में लगा दिया है।पीठ ने व्यक्ति को पैसा उधार लेने या बैंक से रिण लेने तथा अपनी पत्नी को एक हफ्ते के अंदर गुजारा भत्ता की लंबित राशि एवं मासिक राशि अदा करने को कहा, अन्यथा उसे सीधे जेल भेज दिया जाएगा। हालांकि, व्यक्ति के वकील के अनुरोध पर पीठ ने उसे चार हफ्ते की मोहलत दे दी।पति ने अपनी दलील में दावा किया कि उसकी पत्नी एक बहुत ही प्रभावशाली महिला है और उसके मीडिया में अच्चदे संबंध हैं, जिसका इस्तेमाल वह उसकी छवि धूमिल करने के लिए कर रही है। इस पर पीठ ने कहा, ''हम मीडिया से प्रभावित नहीं हैं, हम हर मामले के तथ्य पर गौर करते हैं।'' गौरतलब है कि पत्नी ने 2009 में चेन्नई की एक मजिस्ट्रेट अदालत में अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था।

धारा-90 ग्राम कचहरी का गठन (Constitution of Gram Panchayat)1 प्रत्येक ग्राम पंचायत में जनता की सुलभ एवं सुगम न्याय के लिए एक ग्राम कचहरी की स्थापना की गई जिसमें एक निर्वाचित सरपंच होता है तथा प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र में लगभग 500 की आबादी पर एक पंच होता है। पंचों का निर्वाचन प्रादेशिक निर्वाचन हेतु ग्राम पंचायत के सदस्यों के निर्वाचन के अनुरूप होता है।2. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र एक पंच का निर्वाचन विहित रीति से प्रत्यक्ष रूप से करता है।3. प्रत्येक ग्राम कचहरी के गठन के पश्चात उसे जिला गजट में प्रकाशित किया जाता है तथा ग्राम कचहरी की प्रथम बैठक की नियत तारीख से ग्राम कचहरी प्रभावी होता है।

धारा-122 के तहत जिला न्यायाधीश ग्र्राम कचहरी की कार्यवाहियों एवं अभिलेखें के निरीक्षण करने में सक्षम है। प्राय: ऐसा देखा जाता है कि तुक्ष्य या परेशान करने वाले मुकदमो में भी ग्राम वासी सुबह से शाम तक अपने ग्राम से कोसों दूर कानूनी उल्झनों में अपने आप को वयस्त रखते है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब होती चली जाती है, क्योंकि दिनभर घर से बाहर रहने पर जीवकोपार्जन एवं खेती गृहस्थी का कार्य भी प्रभावित होता है एवं शहर में जाने पर फिजुल खर्ची के कारण आर्थिक तंगी का शिकार होना पड़ता है। संविधान निर्माताओं ने ग्राम वासियों का कानून की जटिबल प्रक्रियाओं से निजात दिलाने के लिए इस बात की कल्पना की थी कि उन्हें कानून की जटिलतम प्रक्रियाओं से मुक्ति दिलाने का एक ही माध्यम है और वह है ग्राम कचहरी, जहाँ अपने द्वारा चुने गये पंच, सरपंच एवं उप- सरपंच के द्वारा सौहार्दपूर्ण वातावरण में उनकी शिकायतों एवं वादों का निपवटारा कम-से-कम समय में पूण्र आस्था एवं निष्ठा के साथ किया जा सके। वर्त्‍तमान परिप्रेक्ष्य में सरकार संविधान निर्माताओं के अभिलाषओं को साकार करने हेतु कृत संकल्प है एवं संभव सहायता सरकार के द्वारा उपलब्ध कराई जा सके ताकि न्याय सर्वसुलभ हो।,

धारा-120धारा-120 के तहत तीन वर्ष की समाप्ति के बाद किसी वाद पर विचार नहीं किया जायेगा। ऐसा प्रावधान लिमिटेशन एक्ट को ध्यान में रख कर किया गया है।

धारा-116धारा-116 के तहत ग्राम कचहरी में विधि व्यवसायी को उपस्थित होने, बहस करने एवं कार्य करने से रोक लगा दिया गया है। लेकिन धारा-117 के तहत पक्षकार स्वयं या कुटुम्ब, मित्र या अन्य व्यक्तियों के माध्‍यम से उपस्थित हो सकेंगे। न्यायालय कभी भी ग्राम कचहरी के अभिलेख को मांग कर देख सकता है। मामले का स्थानांतरण कर सकता है। किसी कार्यवाही को रद्द कर सकता है। पूर्णविचारण हेतु लौटा सकता है। रिपोर्ट मांग सकता है। यह प्रवाधान धारा-118 के तहत इसलिए किया गया कि ग्राम कचहरी के उपर न्यायालय का नियंत्रण बना रहे। ग्राम कचहरी को वारंट जारी करने का अधिकार नहीं है। यदि किसी अभ्यिुक्त का उपस्थित कराने में गा्रम कचहरी असमर्थ हो जाय, तो वैसी परिस्थिति में जमानती वारंट न्यायिक दण्डाधिकारी के पास अग्रसारित किया जायेगा, जो वारंट को प्रतिहस्ताक्षर कर उस थाना प्रभारी के पास अग्रसारित कर देगा। इसके अलावे यदि सिविल मामले में ग्राम कचहरी डिक्री को निष्पादित करने में असमर्थ हो तो निष्पादन हेतु मुन्सिफ के पास भेज देगा। यह व्यवस्था घारा-119 के तहत की गई है।

धारा-115धारा-115 के तहत न्यायालय स्वत: या सूचना प्राप्त हाने पर ग्राम कचहरी के द्वारा विचाराधीन मामले को वापस कर देगा।,